कलम चलती है तो दिल की आवाज़
लिखता हूँ,
गम और जुदाई के अंदाज़ इ बयान
लिखता हूँ,
रुकते नहीं हैं मेरी आँखों से आंसू,
मैं जब भी उसकी याद में अलफ़ाज़
लिखता ह
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र
के हम है;
रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम है;
पहले हर चीज़
थी अपनी मगर अब लगता है;
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के
हम है;
वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से;
किसको मालूम कहाँ के हैं, किधर के हम हैं;
चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब;
सोचते रहते हैं किस राहग़ुज़र के हम है।
एक मुद्दत से मेरे हाल से बेगाना है;
जाने ज़ालिम ने किस बात का बुरा माना है;
मैं जो जिंदगी हूँ तो वो भी हैं
अना का कैदी;
मेरे कहने पर कहाँ उसने चले आना है।
भीड़ भाड़ को छोड़ आए हैं बस तन्हाई भाई है.
वहां बहुत बेचैनी भोगी यहां खुमारी छाई है.
वो सवाल अब यहां नहीं हैं जिनके उत्तर मुश्किल थे.
जितनी हमने इच्छा की थी उतनी राहत पाई है.
आँखों के इंतज़ार को दे कर हुनर चला गया;
चाहा था एक शख़्स को जाने किधर चला गया;
दिन की वो महफिलें गईं, रातों के रतजगे गए;
कोई समेट कर मेरे शाम-ओ-सहर चला गया;
झोंका है एक बहार का रंग-ए-ख़याल यार भी;
हर-सू बिखर-बिखर गई ख़ुशबू जिधर चला गया;
उसके ही दम से दिल में आज धूप
भी चाँदनी भी है;
देके वो अपनी याद के शम्स-ओ-क़मर चला गया;
कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर कब से भटक रहा है दिल;
हमको भुला के राह वो अपनी डगर चला गया।
बदला न अपने आपको...
बदला न अपने आपको जो थे वही रहे;
मिलते रहे सभी से अजनबी रहे;
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी;
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे;
दुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को तुम;
थोड़ी बहुत तो जे़हन में नाराज़गी रहे;
गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो;
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे;
हर वक़्त हर मकाम पे हँसना मुहाल है;
रोने के वास्ते भी कोई बेकली रहे।