*इंसान अपना वो चेहरा तो* *खूब सजाता है जिस पर* *लोगों की नज़र होती है.* *मगर आत्मा को सजाने की* *कोशिश कोई नही करता* जिस पर परमात्मा की नजर होती हैं।.* *।। हरि ॐ ।।*
"सोने में जब जड़ कर हीरा, आभूषण बन जाता है, वह आभूषण फिर सोने का नही, हीरे का कहलाता है। काया इंसान ही सोना है और, कर्म हीरा कहलाता है, कर्मो के निखार से ही, मूल्य सोने का बढ़ जाता है।