अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र
के हम है;
रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम है;
पहले हर चीज़
थी अपनी मगर अब लगता है;
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के
हम है;
वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से;
किसको मालूम कहाँ के हैं, किधर के हम हैं;
चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब;
सोचते रहते हैं किस राहग़ुज़र के हम है।
तन्हा हो कभी तो मुझे ढूंढ लेना;
इस दुनियां से नहीं अपने दिल से पूछ लेना;
आपके आस पास ही कहीं रहते हैं हम;
यादों से नहीं तो साथ गुज़ारे लम्हों से पूछ लेना।
हवा का ज़ोर
भी काफ़ी बहाना होता है;
अगर चिराग किसी को जलाना होता है;
ज़ुबानी दाग़ बहुत लोग करते रहते हैं;
जुनूँ के काम को कर के दिखाना होता है;
हमारे शहर में ये कौन अजनबी आया;
कि रोज़ सफ़र पे रवाना होता है;
कि तू भी याद नहीं आता ये
तो होना था;
गए दिनों को सभी को भुलाना होता है।
ना पूछो हाल मुझसे #धड़कनो की #रफ़्तार का
असर आज भी है आँखों में मेरे #दीदार का
लिख दिया है अपना #अफसाना लफ्ज़ो में तुझको
सुन लो मेरी #आवाज में एक #नगमा #प्यार का ..iii